निशानी/Nishani

                         
छत पर रखा गमला बहुत पुराना हो गया था।उसमे लगा पोधा भी बहुत पुराना था। जितना पुराना गमला था उतना पुराना ही वह दिखने वाला पोधा था।रोहन उस गमले को भूत संभाल कर रखता था वह उस पोधे को उतना ही प्यार देता था जितना उस गमले को देता था।एक बार वह गमला एक जगह से टूट गया तो रोहन ने उसे तारो से बांध दिया। ताकि गमला पूरी तरह से टूटकर बिखरे नहीं।तभी अचानक रोहन के कुछ मित्र घर आए और उसे देखकर वे भी छत पर चढ आए।
            उसमे से एक दोस्त ने पुराने गमले कि जर्जर हालत देखकर कहा,यार रोहन तुम हो बहुत कंजूस। बाप इतना बड़ा बंगला बना गया तेरे लिए और तो उस बंगले को खंडर बनाने पर तुला है।क्यो क्या कंजूसी दिखा दी मैने?  रोहन ने उसे टोकते हुए पूछा। दोस्त ने कहा, तुम्हारी छत पर रखे इस पुराने मैले से गमले को देखता हूं तो लगता है कि इस आलीशान बंगले पर ये कोई दाग लगा हो। यह सुनकर रोहन ने जवाब दिया,ये बंगले पर दाग नहीं बल्कि एक ऐसी निशानी है जिसको देखकर मेरा उदास चेहरा खिल जाता है।
     
   कैसी निशानी? दूसरे दोस्त ने आश्चर्य से पूछा। यह मेरे पापा - मम्मी की निशानी है। मुझे अच्छी तरह से याद है जब पापा बड़े चाव से इस गमले को खरीदकर लाए थे और मम्मी इस तुलसी के पोधे को इसमें लगाने के लिए लाई थी।दोनों ने मिलकर बड़े प्रेम से लगाया था।जब तक वे इस दुनिया में रहे तब तक दोनों ने इसको सभाल कर रखा। उनकी निशानी मुझे घर में पापा - मम्मी की मौजूदगी का अहसास दिलाती है।         कहते हुए रोहन की आंख भर आई।यह सब सुनकर दोस्तो की नजरें एक जगह ठहर -सी गई थी। कुछ देर वातावरण में खामोशी छाई रही । नि:संदेह दोस्तो को अपनी बात पर शर्मिंदगी हो रही थी।रोहन ने बात को बदलते हुए कहा, देखो यार हर नई चीज कभी न कभी पुरानी होती है। 
  बहुत सी जर्जर चीजों से हमें लगाव इसलिए हो जाता है क्योंकि वे हमारे अपनों की बेहद खास होती है। जिंदा रहने तक वे इन्हे हमेशा संभाल कर रखते है।तो उनके बाद हम इन्हे क्यों न संजोए

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