इस प्रकार करे मक्का(खरीफ)की फसल तैयार

आओ सीखें मक्का की खेती कैसे करें


आम जानकारी:-
    मक्का दूसरे स्तर की फसल है , जो अनाज और चारा दोनों के लिए प्रयोग की जाती है । मक्की को ' अनाज की रानी ' के नाम से भी जाना जाता है , क्योंकि बाकी फसलों के मुकाबले इसकी पैदावार सब से ज्यादा है । इससे भोजन पदार्थ भी तैयार किए जाते हैं जैसे कि स्टार्च , कॉर्न फ्लैक्स और गुलूकोज़ आदि । यह पोल्टरी वाले पशुओं की खुराक के तौर पर भी प्रयोग की जाती है । मक्की की फसल हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है क्योंकि इसे ज्यादा उपजाऊपन और रसायनों की जरूरत नहीं होती । इसके इलावा यह पकने के लिए 3 महीने का समय लेती है जो कि धान की फसल के मुकाबले बहुत कम है , क्योंकि धान की फसल पकने के लिए 145 दिनों का समय लेती है । वाइस चांसलर के अनुसार , मक्की की फसल उगाने से किसान अपनी खराब मिट्टी वाली ज़मीन को भी बचा सकते हैं , क्योंकि यह धान के मुकाबले 90 प्रतिशत पानी और 79 प्रतिशत उपजाऊ शक्ति को बरकरार रखती है । यह गेहूं और धान के मुकाबले ज्यादा फायदे वाली फसल है । इस फसल को कच्चे माल के तौर पर उद्योगिक उत्पादों जैसे कि तेल , स्टार्च , शराब आदि में प्रयोग किया जाता है । मक्की की फसल उगाने वाले मुख्य राज्य उत्तर प्रदेश , राज्यस्थान , मध्य प्रदेश , बिहार , हिमाचल प्रदेश , जम्मू कश्मीर और पंजाब हैं । दक्षिण में आंध्रा प्रदेश और कर्नाटक मुख्य मक्की उत्पादक राज्य हैं ।




मिट्टी
मिट्टी मक्की की फसल लगाने के लिए उपजाऊ , अच्छे जल निकास वाली , मैरा और लाल मिट्टी जिसमें नाइट्रोजन की उचित मात्रा हो , जरूरी है मक्की रेतली से लेकर भारी हर तरह की ज़मीनों में उगाई जा सकती हैं समतल ज़मीनें मक्की के लिए बहुत अनुकूल हैं , पर कईं पहाड़ी इलाकों में भी यह फसल उगाई जाती है । अधिक पैदावार लेने के लिए मिट्टी में जैविक तत्वों की अधिक मात्रा पी एच 5 . 5 - 7 . 5 और अधिक पानी रोककर रखने में सक्षम होनी चाहिए । बहुत ज्यादा भारी ज़मीनें भी इस फसल के लिए अच्छी नहीं मानी जाती । खुराकी तत्वों की कमी पता करने के लिए मिट्टी की जांच करवाना आवश्यक है ।


प्रसिद्ध किस्में और पैदावार:-

Sankar Ganga safed 2 : यह सफेद बीजों वाली किस्म है । इसवं परिकी लवाई 170 200 मी . होती है । यह किरम । 15120 दिनों में पकती है और इसकी औसतन गैदावार 18 - 20 विवंटल प्रति एकड होती है । इसके बीजों में 10 प्रतिशत प्रोटीन होता है ।
SGanga 5 : पहलीले बोजा वाली किस है । इसके पोधे की लंबाई1 / 0 - 180 सें . मी . होती है यह विन 100 - 115 दिनों में पकती हैऔर इसकी जीतननादातार 1618 क्लिति एकड़ होती है । इसके बीजों में 10 - 11तिशत प्रोटीन की मात्रा होती है । Sankul Ageti 76 ; महपाल बीजों नाली किरमहा इसीधे की लंबाई 150 - 185 से . मी . होती है यह किस 85 - 95 दिनों में गकती है औरइसकी औसतन पैदावार 12 - 15 जिवंटल प्रति एकड़ होती है । इसकी खेतारानी क्षेत्रों मझी जाती है । Sankul Navjot ( J - 684 ) : यह जल्दो सवाल ' पाल बीजों वाली किरम है । यह निरम 85 दिनों में पकता है और इसकी सन्नपदाचार 12 - 15 विंटल प्रति एकड़ होती है इसकी खेती बारानी क्षेत्रों में की जाती है । इसकी खेती बारानी क्षेत्रों में करने से अची अपज देती है । PEH . M . - 2 : यह जल्दी पकने वाली संकर मक्की की किस्म है यह किस्म 90 दिनों में पकती है और इसकी औसतन पैदावार 11 - 19 दिलप्रतिपाईहताहायपोलेबाजों की किरमह । 22 ग्राम भार प्रांते 100 ग्राम बीज ) Pratap Sankar Maize 1 : बह जल्दीतने वाली किरम 8085 दिनों में पक जाती है । यह सफेद बोजा वाली किस 23 - 24ग्राम प्रांत 100 बीजा है । इसकी औसतन दावार 12 - 14 क्विंटल प्रति एकड़ होनी है । Pratap Maize 3 : यह संकुल विस्म है । यह विस्म ! 1 - 85 दिनों में पकली और इसकी औसतन पैदावार 1011 क्विंटल प्रति एकड़ होती है । यह सफेद बीजों वाली किस्म है , जिनका 22 - 23 ग्राम भारति 100 बीज होता है । यह किस्म काम वारानी क्षेत्रों में लगाने के लिए उपयुक्त है । Pratap Maize 5 : यह मध्यम सकने वाली किस्म है जो कि 90 - 95 दिनों में पक जाती है । यह संकुल नक्की की किस्म है जो कि औसतन पदाचार 1416टिल प्रति एकड़ देता है । वह सफेदवीर्जा बाली किस्म है इसक 25 ग्राम भार प्रति 100बज होता है । Pratap OPM Sankar 1 : 4मचमकदकी निरम ( 195230 सें . नी है जो कि 85 - 90 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 74 - 75वंटल ति एकड़ होती है । इसके बीजों में उच्च गुगवता वाली प्रोटीन 8 . 87 प्रतिशनी , लाइसिन12 . 50 प्रतिशत ) और ' ट्रिप्टोफन ( 0 . 66 प्रतिशत पाया जाता है । दूसरे राज्यों की किस्में PMH 1 : यह जिस्म सभी राज्यों में सिंचित स्थितियों में खरीप बसंत और गर्मियों के मोसन में आने के लिए उपयुक्त है । बहलाये समाकी किस्म है जो कि 95 दिन में पकती है इसका तना नजदूत ओर जामुनी रंग का होता है । इसकी असतन उपजीबिंटल प्रति एकड़ होती है । Prabhat : यह लंदं समय की किस्म है । यह कि सभी राज्यों में सिंचित स्थितियों में खरोप बसंत और गर्मियों के मौसम में लगाने के लिए उपयुक्त है । इसका पौधा मध्यमकदा , मानमरातना और गीन तोड़ प्रतिरोधी है । यह किस्म 5 दिनों में पक जाती है । इसकी औसतन पैदावार 11 . 5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है । Kesri : यह मध्यम समय की किस्म है , जो 85 दिनों में पकती है । इसके दाने संतरी रंग के होते हैं । इसकी औसतन पैदावार 15 क्विंटल प्रति एक होता है । PMH - 2 : यह काम सम्म की शिस्म है , जो दिनों में पकती है । इसकी खेतारानी क्षेत्रों के साथ नाथ सिंचित क्षेत्रों में की जा सकती है । यह हाइब्रेिड किस्म एये को सहनयोग्य है । इसकी गलियां मध्यम लंबी और संतरी रंग के दाने होते हैं । इसकी आंसतन पैदावार 15 . 5 दिलप्रति हालाह । JH 3459 : यह कोर्ट सनय की किस्म है , जो 14 दिन में पकती है । यह सूखे और गर्दननाडकीसहनेगर है । इसके दाने संतरी के दाने झोन हैं । इसकी ओसतन पैयामार 17 . 5 विंटल प्रति एकड़ होती है । Prakash : बह सूखेसहने योग्न , जल्दी पकने वाली182 दिन ) हाइल्डि किस है । इसकी औसतन पैदावार 15 - 17 विटेंटल प्रति एकड़ होती है । Megha : यह छोटे सम्व की किस्म है । 82 दिनां में पक जाती है । इसके पीले संतरों सा वे . दानं होते हैं । इसकी औसतन पैदावार ? दिलप्रति हता । Pratap Makka chari6 : यह किस्म MPLIARI , उदयपुर द्वारा विलसित की गई है । हमममनलांना किरम है । इसका नामजी , मध्यम मोटा और गर्दन तोड़ के प्रतिरोधी है । यह 90 - 95 दिनों में पक जाती है । इसके हरे चारे को पैदावार 11 - 7 वंटल प्रति एकड़ PEEHM 5 : यह मया की अगेती हाइब्रिज विस्म है । यह ज्यादा तापमाननसहनेयोग्य है । यह पंजाब , हरियाणा , दिल्लीजार स्तर प्रदेश में बिजाई के लिए उपयुक्त किस है । इसकी ओसतन पैदावार 20 जिटल प्रति एकड़ होती है । HOPM - 1 Hybrid : वह हरियागा एमाल्वर यूनिवालिटी द्वारा बिशसित की गई है । इसकी आंसतन पैदावार 5 क्विटल प्रति एकर होनी । म पत्तों के सात रोग से एमएलबीआरटीएल बी की प्रतिरोधक किस है ।

जमीन की तैयारी:-
ज़मीन की तैयारी फसल के लिए प्रयोग किया जाने वाला खेत नदीनों और पिछली फसल से मुक्त होना चाहिए । मिट्टी को नर्म करने के लिए 6 से 7 बार जोताई करें । खेत में 8 - 10 टन प्रति एकड़ गाय का गला हुआ गोबर और 10 पैकेट एजोसपीरीलम के डालें । खेत में 45 - 50 सें . मी . के फासले पर खालियां और मेंड़ बनाएं ।
बिजाई:-

                बिजाई का समय खरीफ के मौसम में फसल की बिजाई अंत मई से जून या मॉनसून की शुरूआत में की जाती है । बसंत ऋतु की फसल आखिरी जनवरी से लेकर फरवरी के अंत तक बोयी जाती है । बेबी कॉर्न की रोपाई दिसंबर और जनवरी को छोड़कर पूरे साल में की जा सकती है । स्वीट कॉर्न बिजाई के लिए खरीफ और रबी का मौसम उपयुक्त होता है । फासला अधिक पैदावार लेने के लिए स्त्रोतों का सही प्रयोग और पौधों में सही फासला होना जरूरी है । खरीफ की मक्की के लिए : 62X20 सें . मी . स्वीट कॉर्न : 60X20 सें . मी . बेबी कॉर्न : 60X20 सें . मी . या 60X15 सें . मी . पॉप कॉर्न : 50X15 सें . मी . चारा : 30X10 सें . मी . बीज की गहराई बीजों को 3 - 4 सैं . मी . गहराई में बीजें । स्वीट कॉर्न की बिजाई 2 . 5 सें . मी . गहराई में करें । बिजाई का ढंग बिजाई हाथों से गड्ढा खोदकर या आधुनिक तरीके से ट्रैक्टर और सीड डरिल की सहायता से मेंड़ बनाकर की जा सकती है ।


बीज :-
               
    बीज की मात्रा बीज का मकसद , बीज का आकार , मौसम , पौधे की किस्म , बिजाई का तरीका आदि बीज की दर को प्रभावित करते हैं । 1 ) खरीफ की मक्की के लिए : 8 - 10 किलो प्रति एकड़ 2 ) स्वीट कॉर्न : 8 किलो प्रति एकड़ 3 ) बेबी कॉर्न : 16 किलो प्रति एकड़ 4 ) पॉप कॉर्न : 7 किलो प्रति एकड़ 5 ) चारा : 20 किलो प्रति एकड़ अंतरफसली : मटर और मक्की की फसल को मिलाकर खेती की जा सकती है । इसके लिए मक्की के साथ एक पंक्ति मटर लगाएं । पतझड़ के मौसम में मक्की को गन्ने के साथ भी उगाया जा सकता है । गन्ने की दो पंक्तियों के बाद एक पंक्ति मक्की की लगाएं । बीज का उपचार फसल को मिट्टी की बीमारियों और कीड़ों से बचाने के लिए बीज का उपचार करें । सफेद जंग से बीजों को बचाने के लिए कार्बेनडाज़िम या थीरम 2 ग्राम प्रति किलो बीज के साथ उपचार करें । रासायनिक उपचार बाद बीज को अज़ोसपीरीलम 600 ग्राम + चावलों के चूरे के साथ उपचार करें । उपचार के बाद बीज को 15 - 20 मिनटों के लिए छांव में सुखाएं । एजोस्पाइरिलम मिट्टी में नाइट्रोजन को बांधकर रखने में मदद करता है । निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी का प्रयोग करें । फंगसनाशी दवाईमात्रा ( प्रति किलोग्राम बीज ) _ Imidachloprid 70WS 5gm Captan 2 . 5gm Carbendazim + Captan ( 1 : 1 ) | 2gm
खाद:-
                   खाद खादें ( किलोग्राम प्रति एकड़ ) | UREA | DAP or SSP MOP | ZINC | | 75 - 90 | 27 - 55 | 75 - 150 | 15 - 20 | 10 | तत्व ( किलोग्राम प्रति एकड़ ) NITROGEN 35 - 40 PHOSPHORUS 12 - 24 | POTASH | 8 - 12 ( मिट्टी की जांच के मुताबिक ही खाद डालें ) सुपर फासफेट 75 - 150 किलो , यूरिया 75 - 110 किलो और पोटाश 15 - 20 किलो ( यदि मिट्टी में कमी दिखे ) प्रति एकड़ डालें । एस . एस . पी और एम . ओ . पी की पूरी मात्रा और यूरिया का तीसरा हिस्सा बिजाई के समय डालें । बाकी बची नाइट्रोजन पौधों के घुटनों तक होने और गुच्छे बनने से पहले डालें । मक्की की फसल में जिंक और मैग्नीश्यिम की कमी आम देखने को मिलती है और इस कमी को पूरा करने के लिए जिंक सल्फेट @ 8 किलो प्रति एकड़ बुनियादी खुराक के तौर पर डालें । जिंक और मैगनीश्यिम के साथ साथ लोहे की कमी भी देखने को मिलती है जिससे सारा पौधा पीला पड़ जाता है । इस कमी को पूरा करने के लिए 25 किलो प्रति एकड़ सूक्ष्म तत्वों को 25 किलो रेत में मिलाकर बिजाई के बाद डालें ।

खरपतवार नियंत्रण:-
                           नदीन मक्के की फसल में गंभीर समस्या होते हैं । ज्यादातर खरीफ / मॉनसून के मौसम में वे मक्के से पूरे पोषक तत्वों को ले लेते हैं और 35 प्रतिशत तक पैदावार कम कर देते हैं । इसलिए अच्छी पैदावार के लिए समय पर नदीनों की रोकथाम करनी जरूरी है । मक्की की कम से कम दो गोडाई करें । पहली गोडाई बिजाई से 20 - 25 दिन बाद और दूसरी गोडाई 40 - 45 दिनों के बाद , पर ज्यादा होने की सूरत में एट्राज़िन 500 ग्राम प्रति 300 लीटर पानी से स्प्रे करें । गोडाई करने के बाद मिट्टी के ऊपर खाद की पतली परत बिछा दें और जड़ों में मिट्टी लगाएं ।

सिंचाई:-

        बिजाई के तुरंत बाद सिंचाई करें । मिट्टी की किस्म के आधार पर तीसरे या चौथे दिन दोबारा पानी लगाएं । यदि बारिश पड़ जाये तो सिंचाई ना करें । छोटी फसल में पानी ना खड़ने ना दें और अच्छे जल निकास का प्रबंध करें । फसल को बीजने से 20 - 30 दिन तक कम पानी दें और बाद में सप्ताह में एक बार सिंचाई करें । जब पौधे घुटने के कद के हो जायें तो फूल निकलने के समय और दाने बनने के समय सिंचाई महत्तवपूर्ण होती है । यदि इस समय पानी की कमी हो तो पैदावार बहुत कम हो जाती है । यदि पानी की कमी हो तो एक मेंड़ छोड़कर पानी दें । इससे पानी भी बचता है ।

पौधे की देखभाल:-
 भूरी जालेदार फफूंदी :


इस बीमारी की धारियां नीचे के पत्तों से शुरू होती हैं । यह पीले रंग की और 3 - 7 मि . मी . चौड़ी होती हैं । जो पत्तों की नाड़ियों तक पहुंच जाती हैं । यह बाद में लाल और जामुनी रंग की हो जाती हैं । धारियों के और बढ़ने से पत्तों के ऊपर धब्बे पड़ जाते । इसे रोकने के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें । बीज को मैटालैक्सीयल 6 ग्राम प्रति किलो बीज _ से उपचार करें । प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें और मैटालैक्सीयल 1 ग्राम प्रति लीटर या मैटालैक्सीयल + मैनकोज़ेब 2 . 5 ग्राम प्रति लीटर से स्प्रे करें ।
गुलाबी छेदक :
यह कीट भारत के प्रायद्विपीय क्षेत्र में सर्दी ऋतु में नुकसान करता है । यह कीट मक्की की जड़ों को छोड़कर बाकी सभी हिस्सों को प्रभावित करता है । यह पौधे के तने पर गोल _ _ और एस नाप की गोलियां बनाकर उन्हें मल से भर देता है और सतह पर छेद कर देता है । ज्यादा नुकसान होने पर तना टूट भी जाता है । इसे रोकने के लिए कार्बोफ्यूरॉन 5 प्रतिशत डब्लयु / डब्लयु 2 . 5 ग्राम प्रति किलो से बीज का उपचार करें । इसके इलावा 3 टराइकोकार्ड प्रति एकड़ अंकुरन से 10 दिन बाद डालने से भी नुकसान से बचा जा सकता है । रोशनी और फीरोमोन कार्ड भी पतंगे को पकड़ने के लिए प्रयोग किए जाते हैं ।
कॉर्न वार्म :
यह सुंडी रेशों और दानों को खाती है । सुंडी का रंग हरे से भूरा हो सकता है । सुंडी के शरीर पर गहरी भूरे रंग की धारियां होती हैं , जो आगे चलकर सफेद हो जाती हैं । एक एकड़ में 5 फीरोमोन पिंजरे लगाएं । इसे रोकने के लिए कार्बरिल 10 किलो प्रति एकड़ या मैलाथियोन 10 किलो प्रति एकड़ की स्प्रे बाबू झंडे निकलने से तीसरे और अठारवें दिन करें ।
शाख का कीट :
यह कीट पत्ते के अंदर अंडे देता है जो कि शाख के साथ ढके हुए होते हैं । इससे पौधे बीमार और पीला पड़ जाते हैं । पत्ते शिखर से नीचे की ओर सूखते हैं और बीच वाली नाड़ी अंडों के कारण लाल रंग की हो जाती है और सूख जाती है । इसे रोकने के लिए डाईमैथोएट 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें । दीमक : यह कीट बहुत नुकसानदायक है और मक्की वाले सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं । इसे । रोकने के लिए फिप्रोनिल 8 किलो प्रति एकड़ डालें और हल्की सिंचाई करें । यदि दीमक का हमला अलग अलग हिस्सों में हो तो फिप्रोनिल के 2 - 3 किलो दाने प्रति पौधा डालें खेत को साफ सुथरा रखें 
दीमक : यह कीट बहुत नुकसानदायक है और मक्की वाले सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं । इसे । रोकने के लिए फिप्रोनिल 8 किलो प्रति एकड़ डालें और हल्की सिंचाई करें । यदि दीमक का हमला अलग अलग हिस्सों में हो तो फिप्रोनिल के 2 - 3 किलो दाने प्रति पौधा डालें खेत को साफ सुथरा रखें ।

 शाख की मक्खी : यह दक्षिण भारत की मुख्य मक्खी है और कई बार गर्मी और बसंत ऋतु में उत्तरी भारत में भी पाई जाती है । यह छोटे पौधों पर हमला करती है और उन्हें सूखा देती है । इसे रोकने के लिए कटाई के बाद खेत की जोताई करें और पिछली फसल के बचे कुचे को साफ करें । बीज को इमीडाक्लोप्रिड 6 मि . ली . प्रति किलो बीज के साथ उपचार करें । इससे मक्खी पर आसानी से काबू पाया जा सकता है । बिजाई के समय मिट्टी में फोरेट 10 प्रतिशत सी जी 5 किलो प्रति एकड़ डालें । इसके इलावा डाईमैथोएट 30 प्रतिशत ई सी 400 मि . ली . प्रति एकड़ या मिथाइल डैमीटोन 25 प्रतिशत ई सी 450 मि . ली . प्रति एकड़ से स्प्रे करें ।

बीमारियां और रोकथाम
 टांडे सूखना : इससे तना ज़मीन के साथ फूल कर भूरे रंग का जल्दी टूटने वाला और गंदी बास मारने वाला लगता है । इसे रोकने के लिए पानी खड़ा ना होने दें और जल निकास की तरफ ध्यान दें । इसके इलावा फसल के फूल निकलने से पहले ब्लीचिंग पाउडर 33 प्रतिशत कलोरीन 4 किलो प्रति एकड़ मिट्टी में डालें ।

टी एल बी:- यह बीमारी उत्तरी भारत , उत्तर पूर्वी पहाड़ियां और प्रायद्विपीय क्षेत्र में ज्यादा आती है और एक्सरोहाइलम टरसीकम द्वारा फैलती है । यदि यह बीमारी सूत कातने के समय आ जाए तो आर्थिक नुकसान भी हो सकता है । शुरू में पत्तों के ऊपर छोटे फूले हुए धब्बे दिखाई देते हैं और नीचे के पत्तों को पहले नुकसान होता है और बाद में सारा बूटा जला हुआ दिखाई देता है । यदि इसे सही समय पर ना रोका जाये तो यह 70 प्रतिशत तक पैदावार कम कर सकता है । इसे रोकने के लिए बीमारी के शुरूआती समय में मैनकोज़ेब या ज़ाइनैब 2 - 4 ग्राम प्रति लीटर 10 दिनों के फासले पर स्प्रे करें ।
पत्ता झलस रोग : 
यह बीमारी गर्म ऊष्ण , उप ऊष्ण से लेकर ठंडे शीतवण वातावरण में आती है और बाइपोलैरिस मैडिस द्वारा की जाती है । शुरू में जख्म छोटे और हीरे के आकार के होते हैं और बाद में लंबे हो जाते हैं । जख्म आपस में मिलकर पूरे पत्ते को जला सकते हैं । डायाथेन एम 45 या ज़ाइनेब 2 . 0 - 2 . 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 7 - 10 दिन के फासले पर 2 - 4 स्प्रे करने से इस बीमारी को शुरूआती समय में ही रोका जा सकता है ।

 फूके बाद टांडों का गलना : यह एक बहुत ही नुकसानदायक बीमारी है जो कि बहुत सारे रोगाणुओं के द्वारा इकट्ठे मिलकर की जाती है । यह जड़ों , शिखरों और तनों के उस हिस्से पर जहां दो गांठे मिलती हैं , पर नुकसान करती है । इस बीमारी के ज्यादा आने की सूरत में पोटाश्यिम खाद का प्रयोग कम करें । फसलों को बदल बदल कर लगाएं और फूलों के खिलने के समय पानी की कमी ना होने दें । खालियों में टराइकोडरमा 10 ग्राम प्रति किलो रूड़ी की खाद में बिजाई के 10 दिन पहले डालें ।

खेती हानिकारक कीट और रोकथाम तना छेदक : चिलो पार्टीलस , यह कीट सारी मॉनसून ऋतु में मौजूद रहता है । यह कीट पूरे देश में खतरनाक माना जाता है । यह कीट पौधे उगने से 10 - 25 रातों के बाद पत्तों के नीचे की ओर अंडे देता है । कीट गोभ में दाखिल होकर पत्तों को नष्ट करता है और गोली के निशान बना देता है । यह कीट पीले भूरे रंग का होता है , जिसका सिर भूरे रंग का होता है । टराईकोग्रामा के साथ परजीवी क्रिया करके 100000 अंडे प्रति एकड़ एक सप्ताह के फासले पर तीन बार छोड़ने से इस कीट को रोका जा सकता है । तीसरी बार कोटेशिया फलैवाईपस 2000 प्रति एकड़ से छोड़ें । फोरेट 10 प्रतिशत सी जी 4 किलो प्रति एकड़ या कार्बरिल 4 प्रतिशत जी 5 किलो प्रति को रेत में मिलाकर 50 किलो मात्रा में पत्ते की गोभ में बिजाई के 20 दिन बाद डालें या कीटनाशक कार्बरिल 50 डब्लयु पी 1 किलो प्रति एकड़ बिजाई के 20 दिन बाद या डाईमैथोएट 30 प्रतिशत सी 200 मि . ली . प्रति एकड़ की स्प्रे करें । कलोरोपाइरीफॉस 1 - 1 . 5 मि . ली . प्रति लीटर की स्प्रे पौधे उगने के 10 - 12 दिनों के बाद स्प्रे करने से भी कीड़ों को रोका जा सकता है ।

 पाइथीयम : इससे पौधे की निचली गांठें नर्म और भूरी हो जाती हैं और पौधा गिर जाता है प्रभावित हुई गांठे मुड़ जाती हैं । बिजाई से पहले पिछली फसल के बचे कुचे को नष्ट करके खेत को साफ करें । पौधों की सही संख्या रखें और मिट्टी में कप्तान 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर गांठों के साथ डालें ।

कमी और इसका इलाज:-
                    जिंक की कमी यह ज्यादातर अधिक पैदावार वाली किस्मों का प्रयोग करने वाले इलाकों में पाई जाती है । इससे पौधे के शिखर से हर ओर दूसरे या तीसरे पत्ते की नाड़ियां सफेद पीले और लाल रंग की दिखती हैं । जिंक की कमी को रोकने के लिए बिजाई के समय जिंक सल्फेट 10 किलो प्रति एकड़ डालें । यदि खड़ी फसल में जिंक की कमी दिखे तो जिंक सल्फेट और सूखी मिट्टी को बराबर मात्रा में मिलाकर पंक्तियों में डालें । मैग्नीश्यिम की कमी यह मक्की की फसल में आम पाई जाती है । यह ज्यादातर पत्तों पर देखी जा सकती है । निचले पत्ते किनारे और नाड़ियों के बीच में पीले दिखाई देते हैं । इसकी रोकथाम के लिए मैगनीशियम सल्फेट 2 किलो की प्रति एकड़ में फोलियर स्प्रे करें । लोहे की कमी इस कमी से पूरा पौधा पीला दिखाई देता है । इस कमी को रोकने के लिए सूक्ष्म तत्व 25 किलो प्रति एकड़ को 18 किलो प्रति एकड़ रेत में मिलाकर बिजाई के बाद डालें ।
फसल की कटाई:-
                 छल्लियों के बाहरले पर्दे हरे से सफेद रंग के होने पर फसल की कटाई करें । तने के सूखने और दानों में पानी की मात्रा 17 - 20 प्रतिशत होने की सूरत में कटाई करना इसके लिए अनुकूल समय है । प्रयोग की जाने वाली जगह और यंत्र साफ , सूखे और रोगाणुओं से मुक्त होने चाहिए । स्वीट कॉर्न की कटाई : जब फसल पकने वाली हो जाये रोज़ कुछ बलियों की जांच करें , ताकि कटाई का सही समय पता किया जा सके । छल्ल्यिं के पूरे आकार में आने और रेशे के सूखने से कटाई दानों को तोडने पर उनमें से दध निकलता है । कटाई में देरी होने से मिठास कम हो जाती है । कटाई हाथों और मशीनों से रात के समय और सुबह करनी चाहिए । बेबी कॉर्न : छल्लियों के निकलने के 45 - 50 दिनों के बाद जब रेशे 1 - 2 सैं मी . के होने पर कटाई करें । कटाई सुबह के समय करें जब तापमान कम और नमी ज्यादा हो । इसकी तुड़ाई प्रत्येक 3 दिनों के बाद करें और किस्म के अनुसार 7 - 8 तुड़ाई करें । पॉपकॉर्न : छल्लियों को ज्यादा से ज्यादा समय के लिए पौधों के ऊपर ही रहने दें । यदि हो सके तो छिल्के के सूखने पर ही कटाई करें ।
कटाई के बाद:-
              स्वीट कॉर्न को जल्दी से जल्दी खेत में से पैकिंग वाली जगह पर लेके जायें ताकि उसे आकार के हिसाब से अलग , पैक और ठंडा किया जा सके इसे आमतौर पर लकड़ी के बक्सों में पैक किया जाता है , जिनमें 4 - 6 दर्जन छल्लियां बक्से और छल्लियों के आकार के आधार पर समा सकती हैं।
                  

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